हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
लिछमन के बाण लगा रै सक्ती लिछमन कै।
ऐसा रै होय कोई बीरा नै जिवाले
आधा राज सबाई धरती, लिछमन कै।
कै तो जिवाले सीता रै सतबंती
कै तो जिवाले हनुमान जती, लिछमन कै।
क्यों तै जिवाले सीता रै सतबंती,
क्यां तै जिवाले हनुमान जती, लिछमन कै।
सत तै जिवाले सीता रै सतबंती,
बूटी तै जिवाले हनुमान जती, लिछमन कै।