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लिपटी रहो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

यूँ ही तुम लिपटी रहो
सुगंध की तरह।

हर साँस में घुलते रहें
ज्वालामुखी
मधु डाल -सी देह
प्राणों पर झुकी
नवनीत कंधों पर
नज़र हो जब टिकी,
बाहुपाश में बँध जाओ
छन्द की तरह।

चूमते हैं पीठ को
रेशमी कुंतल
ज्यों नहाती चाँदनी में
 लहर श्यामल
फिसल रहा है बार-बार
तृषित आँचल,
दृष्टि से बाँधे रहो
अनुबंध की तरह।

लिखते रहें
कथाएँ, किसलय- से अधर
बिछाती रहें
मदहोशियाँ नित सेज पर
मौन वाणी,
रोम-रोम हो उठें मुखर
मन अछूता बाँध लो
भुजबन्ध की तरह ।
-0-(28-3-86, रसमुग्धा अक्तु-दिस-86)