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लिहसि गे गौरा बेटी, तेल मधु हे खरिया हे / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत पूर्णिया जिले के बंगाल राज्य की सीमा से लगे हुए क्षेत्र से आया है। इसलिए इसकी भाषा पर कुछ-कुछ बँगला का प्रभाव है, लेकिन इसमें अंगिका की प्रकृति का भाव अक्षुण्ण है।

लिहसि<ref>लो</ref> गे गौरा बेटी, तेल मधु हे खरिया<ref>खली; खरिया मिट्टी</ref> हे।
कि और हाथे गौरा गे, आगिनसार<ref>अग्नि की तरह चमकने वाला वस्त्र</ref> पटोर<ref>एक प्रकार का रेशमी कपड़ा</ref> हे॥1॥
एक कोसे गेले गौरा गे, गेले दोइ कोस हे।
कि तेसर कोसेॅ गौरा गे, सरे<ref>सर; तालाब</ref> सिलाने<ref>स्नान</ref> हे॥2॥
लहिये सिनाये<ref>स्नान करके</ref> गौरा गे, चौका चढ़ि बैसे हे।
कि दसो<ref>दस स्त्रियों ने मिलकर</ref> लगी गौरा गे, चीरे लम्मा केस हे॥3॥
कै सारि<ref>सौ; सैकड़ा</ref> आबे गौरा गे, हथियो घोरा हे।
कि कै सारि आबे, बरियात कि कै सारि हे॥4॥
पाँच सारि आबे गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
दस सारि आबे बरियात, कि दस सारि हे॥5॥
कहाँ लाय राखबै गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
कि कहाँ लाय राखबै बरियात, कि कहाँ लाय हे॥6॥
घोरा घरँ<ref>घोड़सार</ref> राखबै गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
कि बासा<ref>निवास का घर</ref> घरँ राखबै बरियात, कि बासा घरँ हे॥7॥
किए लाय जमैबै<ref>खिलाओगी</ref> गौरा, हाथियो घोरा हे।
किए लाय जमैंबै बरियात, कि किए लाय हे॥8॥
धान चौर<ref>चावल</ref> जमैंबै गोरा गे, हाथियो घोरा हे।
कि खूबा<ref>खोया; दूध औंटकर बनाया गया गाढ़ा पदार्थ</ref> औंटल दूध लय, जमैंबै बरियात हे॥9॥
किए मुखसुद्धअ<ref>मुखशुद्धि</ref> देबै गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
किए मुखसुद्धअ बरियात, कि किए देबै ना हे॥10॥
रोठा<ref>नया और कच्चा</ref> गुअबा<ref>कसैली</ref> गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
साँची<ref>एक प्रकार का पान</ref> पान जमैंबै बरियात, कि साँची पान हे॥11॥
किए बिदागी<ref>विदाई</ref> गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
किए रे बिदागी बरियात, कि किए बिदागी ना हे॥12॥
धोतिया बिदागी गौरा गे, हाथियो घोरा हे।
कि गौरा बिदागी बरियात, कि गौरा लाए हे॥13॥

शब्दार्थ
<references/>