भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लुटा दिहल परान जे / प्रसिद्ध नारायण सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatBhojpuriRachna}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=
+
|रचनाकार=प्रसिद्ध नारायण सिंह
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=

11:40, 29 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

लुटा दिहल परान जे, मिटा दिहल निसान जे।
चढ़ा के सीस देस के, बना दिहल महान जे।।
जने-जने जगा गइल, नया नसा पिला गइल।
जला-जला सरीर के, स्वदेस जगमगा गइल।।

पहाड़ तोड़ि-तोड़ि के, नदी के धारि मोड़ि के।
सुघर डहरि बना गइल, जे काँट-कूँस कोड़ि के।।
कराल क्रान्ति ला गइल, ब्रिटेन के हिला गइल।
बिहँसि के देस के धजा, गगन में जे खिला गइल।।

अमर समर में सो गइल, कलंक-पंक धो गइल।
लहू के बूँद-बूँद में, विजय के बीज बो गइल।।
ऊ बीज मुस्करा उठल, पनपि के गहगहा उठल।
विनास का विकास में, बसंत लहलहा उठल।।

कली-कली फूला गइलि, गली-गली सुहा गइलि।
सहीद का समाधि पर, स्वतंत्रता लुभा गइलि।।
चुनल सुमन सँवारि के, सनेह-दीप बारि के।
चलीं, उतारे आरती, सहीद का मजारि के।।