लूट का दरबार है चारों तरफ़
आज अत्याचार है चारों तरफ़।
हर कोई भरमा रहा है हर घडी
गुमशुदा संसार है चारों तरफ।
अब घटाएँ ख़ौफ़ की हैं छा गईं
आदमी बेज़ार है चारों तरफ़।
जितने भी हैं लोग बेबस हैं यहाँ
ज़िंदगी लाचार है चारों तरफ़।
क्या मिले दैरो-हरम मे बंदगी से
मौन की दीवार है चारों तरफ़।