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लूसी / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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तन्नू ने थी लूसी पाली
काली काली आँखों वाली
चिड़िया को उड़ते वह लखती
लगती उस क्षण भोली भाली
कुत्ता, गाय बैल आ जाता
भौंक भौंक करती रखवाली
जब घर में कोई आ जाता
स्वागत यह करती मतवाली
जब जाने लगता तो कहती
अभी न जाओ और रहो तुम
बैठो और करो कुछ बातें
मेरा जी भी बहलाओ तुम
ऐसी लूसी फिरती घर में
लम्बे भुरे बालों वाली
छोटा तन पर मन की चंचल
सबका मन हर लेने वाली
दो काली सजीव आँखों की
चितवन मोहित करती थी
कहना जब उसको मिलता तो
मटक मटक कर चलती थी