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लेटइ कदोइया से गोरी के बदनमा / शेष आनन्द मधुकर

लेटइ कदोइया से गोरी के बदनमा,
ओकरो हुलस जइसे लगलइ चननमा।

होठवा से फूटऽ हइ तान।
रोपइ गोरिया खेतवा में धान।

तनि-तनि बदरा भी रोवऽ हइ अकसवा से,
तनि तनि धरती के देह।

खेतवा में छींटल हइ धनवा के अँटिया,
मनवाँ से रहइ जइसे नेह।

निहुरल निहुरल डुबलइ सुरुजवा कि,
जइसे डुबइ रे अरमान।

बाप के जिया में जइसे सोच हो हइ रात दिन,
बेटिया के देख के सेयान।

ओइसने गिरहत्थवन के सोचिते बितऽ हइ दिन,
मोरिया के देख के जवान।

अप्पन अकसवा ला, अपन अंगनवाँ ला,
ए के सुरुज एके चान।

केकरो के बेटिया सिंगरवे में रात दिन,
महले अटरिया के राज,

केकरो के बेटिया के फटले गुदरिया
एको साम जुरइ न अनाज,

केकरो के गोड़ रोज रंगा हइ रकतवा से,
केकरो कदोइये परान।