भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोग / बालकृष्ण काबरा 'एतेश' / कार्ल सैण्डबर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहाड़ों में घूमते हुए मैंने देखा
नीला कोहरा और लाल चट्टान और रह गया अचम्भित।
 
समुद्री तट
जहाँ निरन्तर लहर ऊपर उठती करती अठखेलियाँ,
मैं खड़ा रहा चुपचाप।
सितारों तले मैदान में
क्षितिज की घास पर झुके
सप्तर्षि को देखते हुए मैं डूबा हुआ था विचारों में।

महान लोग,
युद्ध और श्रम के प्रदर्शन,
सैनिक और कामगार,
बच्चों को गोद में लेती माताएँ
इन सभी का मैंने स्पर्श किया
और उनके प्रभावी रोमांच को महसूस किया।

और फिर एक दिन मेरी सच्ची निग़ाह
पड़ी गरीबों पर,
धैर्यवान और परिश्रम करते;
चट्टानों, लहरों और सितारों से अधिक धैर्यवान,
असंख्य, रात के अन्धकार की तरह धैर्यशील
सब-के-सब टूटे हुए, देशों के दयनीय जीर्ण-शीर्ण नागरिक।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा 'एतेश'