भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोग / विजय वाते

Kavita Kosh से
वीनस केशरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:52, 11 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= गज़ल / विजय वाते }} <poem> भीगे रुमा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भीगे रुमाल हिलाते लोग,
सूखे मन ले जाते लोग|

होंठों पर षड्यंत्री चुप्पी,
मन की गाँठ दिखाते लोग|

चंदा जाए झूलाघर तो,
घर झूला ला पाते लोग|

आपनी अपनी पीर लिए सब,
रोते लोग रुलाते लोग|

शुद्ध गणित की भाषा मे अब,
गीत गज़ल भी गाते लोग |