द्रौपदी के बालों से खून बह रहा है दुःशासन का
चेहरा मसृण और आँखों मे मद है
हाथ हवा में परछाइयाँ बना रहे हैं
एक रथ दीवार पर उकेरा जाता है
घोड़े लगाम छुड़ा कर भागे जा रहे हैं
टेढ़ा गांडीव धरा पर पड़ा है
अश्वथामा द्रौपदी के पाँचों बेटौं के सर उठाए दौड़ा चला जाता है
रक्त के तालाब में छिपे दुर्योधन की हँसी गूँजी
और जा मिली पितामह के कराहों में
पहाड़ पर रखा बर्बरीक का सिर लुढ़क गया है
कोई नहीं देखता इस समर को
छोड़ धृतराष्ट्र के
जिसकी भुजाएँ मचल रही हैं
भीम का आलिंगन करने को
हाड़-माँस का इंसान कोई कहाँ बचा
सभी लोहे के पुतलों में बदल गए हैं..