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लो वही हुआ / दिनेश सिंह

355 bytes added, 05:20, 11 सितम्बर 2009
ना रही नदी, ना रही लहर।
बोझिल रातों के मध्य पहर
छपरी से चन्द्रकिरण छनकर
लिख रही नया नारा कोई
इन तपी हुई दीवारों पर
क्या बाँचूँ सब थोथे आखर
ना रही नदी, ना रही लहर।
</poem>
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