भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लौंग मिरिच केर बिरवा / बघेली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बघेली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लौंग मिरिच केर बिरवा घिनौची तरी उपजा
घिनौची तरी उपजा है हो
आवा पान फुलन ऐसे ललना आंगन मोरे खेलें
अंगन मोरे खेलइं हो
ओनेइं आई कारी बदरिया ओनइं जल बरसै
ओनइं जल बरसै हो
बदरी जाइ बरस्या उहै देश छयल उठि भागईं
छयल उठि भागईं हो
बदरी जाइं बरस्या बड़े बूंद छयलि उठि भागईं
छयल उठि भागईं हो
की तुम चोर चहरवा कि राजा के पहरूआ
कि राजा के पहरूआ हौं हो
आवा- की तुम होरिलवा के बाप पलंग मोरी डोलइ
पलंग मोरी डालइं हो
ना हम चोर चहरूआ न राजा के पहरूआ हौं हो
न राजा के पहरूआ हौं हो
रानी हम तौ होरिलवा के बाप पलंग तोरी डोलइ
पलंग तारी डोलइ हो।