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लौटना मुमकिन न होगा / अनीता सिंह - अवतरण इतिहास
2024-03-29T11:56:34Z
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<poem><br />
लौटना मुमकिन न होगा<br />
ऐ! नदी धीरे बहो। <br />
<br />
तुमसे जुड़ते दो किनारे<br />
पत्रवाहक तेरे धारे<br />
तेरी लहरें चूमती हैं<br />
जब भी तुमको ये पुकारे। <br />
हो सके तो संग दरिया के<br />
किनारों, तुम बहो। <br />
<br />
बाग़ में जब कदंब फूलें<br />
डाल पर पड़ते हैं झूले<br />
हसरते भी पेंग भरकर<br />
चाहती हैं गगन छूलें। <br />
जब तलक कोयल न कूके<br />
तुम, बहारों चुप रहो। <br />
<br />
चाँदनी आँचल सम्हारे<br />
चाँद दरिया में उतारे<br />
रजतघट में अमिय भरके<br />
छिड़क आती नगर-द्वारे। <br />
रूप को भरकर नज़र में<br />
तुम, नज़ारों चुप रहो। <br />
</poem></div>
Rahul Shivay