Last modified on 28 जुलाई 2017, at 18:31

लौटना / गौरव पाण्डेय

फूल!
बीज बनकर लौटते हैं
जड़ों की ओर लौटती हैं
पत्तियाँ/खाद बनकर...

तुम देखना
एक दिन ऐसे ही मैं भी लौटूँगा...