भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लौटने पर / महेश उपाध्याय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:23, 22 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश उपाध्याय |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दफ़्तर के बाद क्या मिला ?
थाली में शाम और चन्द्रमा

धुले-धुले कपड़ों से
भरी-भरी अरगनी
साकेती आँगन में
रूठी कामायनी
छोटा-सा इक मुकद्दमा ।

पत्नी से मिर्च हरी
बच्ची से पापड़ी
तख़्ती पर लिखी हुई
आधी बारहखड़ी
सुबह दिए काम की क्षमा ।