Last modified on 4 नवम्बर 2013, at 08:34

लौटे कुछ इस तरह तिरी जल्वा-सरा से हम / आमिर उस्मानी

सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:34, 4 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आमिर उस्मानी }} {{KKCatGhazal}} <poem> लौटे कुछ इ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लौटे कुछ इस तरह तिरी जल्वा-सरा से हम
बनते गए क़दम-ब-क़दम आइना से हम

इस दर्जा पाएमान न होते जफ़ा से हम
लूटे गए सियासत-ए-मेहर-ओ-वफ़ा से हम

बाक़ी ही क्या रहा है तुझे माँगने के बाद
बस इक दुआ में छूट गए हर दुआ से हम

देखी गई न हम से शिकस्त-ए-ग़ुरूर-ए-हुस्न
शरमा गए इरादा-ए-तर्क-ए-वफ़ा से हम

ये क्या कहा जुनूँ है मोहब्बत की इंतिहा
ऐ बे-ख़बर चले हैं इसी इंतिहा से हम

माना कि दिल को तेरे न मिलने का ग़म रहा
सद शुक्र बच गए तलब-ए-मा-सिवा से हम