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लौट आओ / उर्मिल सत्यभूषण

लौट आओ ओ बटोही
लौट आई है बहार
क्षितिज से टकरा के मेरी
लौट आई है पुकार
खोजने को चल दिये
तुम कौन सी नई मंज़िलें
दृग उठाकर देख लेते
हम खड़े थे राह में
मौत की अनदेखी
घाटी से हुआ क्यों प्यार
एक सिसकी पर हमारी
छीन लेते आह तुम
एक आंसू पर हमारे
सौ सौ देते वार तुम
निर्मूल्य हो गई
बिन तुम्हारे
कितनी अश्रुधार।