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वंदना मात हो / प्रेमलता त्रिपाठी

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वंदना मात हो।
भाव से प्रात हो।

 छंद में धार से,
सार की बात हो।

दीन ईमान पर,
हो नहीं घात हो।

मान के पान से,
गारहा गात हो।

धर्म को मानिए,
जात क्यों पात हो।

कर्म ही साधना,
प्रात हो रात हो।

ईश की प्रार्थना,
प्रेम बरसात हो।