Last modified on 6 फ़रवरी 2011, at 10:28

वक़्त के साथ ढल गया हूँ मैं / ज्ञान प्रकाश विवेक

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:28, 6 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक }} {{KKCatGhazal}} <poem> वक़्त के साथ ढल गय…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वक़्त के साथ ढल गया हूँ मैं
बस ज़रा-सा बदल गया हूँ मैं

लौट आना भी अब नहीं मुमकिन
इतना ऊँचा उछल गया हूँ मैं

रेलगाड़ी रुकेगी दूर कहीं
थोड़ा पहले सँभल गया हूँ मैं

आपके झूठे आश्वासन थे
मुझको देखो बहल गया हूँ मैं

मुझको लश्कर समझ रहे हैं आप
जोगियों-सा निकल गया हूँ मैं

मैं तो चाबी का इक खिलौना था
ये ग़नीमत कि चल गया हूँ मैं

हँस रही हैं ऊँचाइयाँ मेरी
सीढ़ियों से फिसल गया हूँ मैं