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वतन से दूर / आरती 'लोकेश'

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गया अवश्य वतन से दूर, वतन हुआ न मुझसे दूर,
तेरी बातें जब-जब कीं, छाया चेहरे पर एक नूर।
सोच तेरी हर लम्हा रहती, यादों ने तेरी किया विह्वल,
कदम थमे दिल वहीं चला, जहाँ तेरी छाया भरपूर॥

गर्व से सीना तन जाता है, मस्तक ऊँचा उठने का काम,
पर देशों से अधिक मान, है बटोरे भारत की आवाम।
भर श्वास मिट्टी की गंध, रक्त में बहती यह पहचान,
देश पराए में एक अपना, केवल मेरे देश का नाम।

नहीं कहता अपना शीश, मैं काट गढ़ूँगा तेरे हार,
माँ जब भी तेरा दूध पुकारे, खड़ा मिलूँगा तेरे द्वार।
आस यही अरदास यही, ममता का प्रतिफल दे सकूँ,
मातृसेवा का यह प्रकार, मैं मातृभाषा का करूँ प्रसार॥