भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वन-बाज़ार / शैलेन्द्र चौहान

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 16 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र चौहान |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीच जंगल में छिपी हुई झील
आसमान में
परिचित-अपरिचित
पक्षियों की उड़ान
छोटे-बड़े वृक्ष विभिन्न
जाति-प्रजाति के
है कितना सुंदर वन
क्यों न रह जाऊँ यहीं?

साइकल पर गुज़रते ग्रामवासी
बतकही करते
सड़क, बिजली, न अस्पताल
स्कूल बारह मील
नहीं बाज़ार भी आसपास

बाज़ार!
बाज़ार तो फैल रहा लगातार
कौन जाने
इस झील के किनारे हो
अद्भुत बाज़ार कल
अनगिनत शो-रूम

फिर कहाँ जाएगा जंगल
क्या बचा रहेगा जंगल?

पेड़ों के बीच
पूरे जंगल में छितराया
इको-फ्रेंडली कं़ज्यूमर
सुपर मार्केट
बॉटनिकल गार्डन और भव्य बाज़ार

कभी एक नदी थी
हर शहर में
निर्मल, स्वच्छ नीर-सलिला
हर तरफ़ आदमी
फैले हैं सूखते हुए
कपड़ों की तरह
नालों के किारे

बदबू का अनवरत प्रवाह
नगर बीच अब।