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वन प्रभु पुंजन मैं, मालती निकुंजन मैं / लाल कवि
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वन प्रभु पुंजन मैं, मालती निकुंजन मैं,
सीतल समीर, अनुसारतै रहत हैं।
कैसे धरै धीर जीव, पीव बिन मेरी बीर,
पीव-पीव पपिहा पुकारतै रहत हैं॥