Last modified on 18 जुलाई 2008, at 02:21

वर्षा-पूर्व / महेन्द्र भटनागर

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:21, 18 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर }} आज ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज छायी है घटा
काली घटा !

महीनों की
तपन के बाद
अहर्निश
तन-जलन के बाद

हवाओं से लिपट
लहरा उठा
ऊमस भरा वातावरण-आँचर !

किसी ने
डाल दी तन पर
सलेटी बादलों की
रेशमी चादर !

मोह लेती है छटा,
मोद देती है घटा,
काली घटा !