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वर्षा में भीगकर. / इब्बार रब्बी

वर्षा में भीगकर
सहज सरल हो गया,
गल गईं सारी क़िताबें
मैं मनुष्य हो गया।
खाली-खाली था
जीवन ही जीवन हो गया,
मैं भारी-भारी
हल्का-हल्का हो गया।
बरस रही हैं बूंदें
इनमें होकर
ऊपर को उठा
लपक कर तना
पानी का पेड़
आसमान हो गया
वर्षा में भीगकर
मैं महान्‍ हो गया।
 

रचनाकाल : 01.08.1980