Last modified on 4 नवम्बर 2009, at 22:40

वर्षा / अब्दुर्रहमान

इमि तपिअउ बहु ग्रीष्म सकौं कस बोलियऊ।
पथिक! आव पुनि पावस ढीठ न आव पियऊ ।

चौदिसि घोरंधार छाय गउ गरुअ-भरो।
गगन-कुहर घुरघुरै सरोषउ अंबुधरो॥

वक छाडिय सलिल-हृद तरु शिखरहिं चढेऊ ।
तांडव करिय शिखंडिहि वर शिखरे रटेऊ ।

सलिलेहिं वर शालूरेंहि परसेउ रसेउ स्वरे।
कल कल किउ कल कंठहिं चढि आमहि शिखरे॥