भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वळै कीं दूजौ / चंद्रप्रकाश देवल

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 17 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रप्रकाश देवल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सगळा जांणै
कदास इण सारू आकबाक नीं व्है
अेक गोळमोळ दुनिया
जिकी आय जावै मतै ई गुड़कती
म्हारै बिचाळै
म्हैं चकन-बकन

वा इज देवै है उडीक री दवायती
औ जांणण में
म्हनै कित्ती जेज लागी
पण, लोग-बाग घणा पैली सूं उडीकता हा
कजांणा कांईं

अबै औ कुण तै करै
कै वै अर म्हैं
आपौ-आप री खाली-माली जरूरतां नीं उडीकै हा
वळै कीं दूजौ इज

अेक घांदौ वळै
औ दूजौ वळै कांई है?