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वसंत गीत-अईलै बसंत ऋतु / धीरज पंडित

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अइलै वसंत ऋतु महुआ बोराय गेलै
देखी केॅ जेकरा भँवरा लोभाय गेलै

लटकै छै फूल ऐन्हो कानोॅ रोॅ बाली
सिन्दुरी सुरूज ऐन्होॅ ठोरोॅ रोॅ लाली
चुनरी केॅ देखी-देखी पछिया उड़ाय गेलै

गोरी संग नाचै रामा मनोॅ रोॅ पपीहरा
मनोॅ मोॅ छगुनै हरदम बदन छरहरा
भावना रोॅ डोर बाँधि मनोॅ उलझाय गेलै

जेकरोॅ बिछुड़लोॅ छै संगी रे सहेलिया
होकरोॅ दरद सुनावै भोरे कोयलिया
कुहे की-कुहे की सबटा सबकॅे बताय गेलै

गावै ई ‘धीरज’ बसंत बहार छै
धरती के अपनोॅ अलगे सिंगार छै
ऐही नाकी देखी-देखी गीत लिखाय गेलै