भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वसंत गीत / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: ओ मृगनैनी , ओ पिक बैनी , तेरे सामने बाँसुरिया झूठी है ! रग-रग में इत…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
+
{{KKGlobal}}
 
+
{{KKRachna
 
+
|रचनाकार=गोपाल सिंह नेपाली
 
+
}}
 +
<poem>
 
ओ मृगनैनी , ओ पिक बैनी ,
 
ओ मृगनैनी , ओ पिक बैनी ,
 
तेरे सामने बाँसुरिया झूठी है !
 
तेरे सामने बाँसुरिया झूठी है !
पंक्ति 29: पंक्ति 30:
 
रग-रग में इतना रंग भरा,
 
रग-रग में इतना रंग भरा,
 
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !
 
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !
 +
<poem>

21:06, 6 फ़रवरी 2010 का अवतरण

ओ मृगनैनी , ओ पिक बैनी ,
तेरे सामने बाँसुरिया झूठी है !
रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !


मुख भी तेरा इतना गोरा,
बिना चाँद का है पूनम !
है दरस-परस इतना शीतल ,
शरीर नहीं है शबनम !
अलकें-पलकें इतनी काली,
घनश्याम बदरिया झूठी है !


रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !
क्या होड़ करें चन्दा तेरी ,
काली सूरत धब्बे वाली !
कहने को जग को भला-बुरा,
तू हंसती और लजाती !
मौसम सच्चा तू सच्ची है,
यह सकल बदरिया झूठी है !


रग-रग में इतना रंग भरा,
कि रंगीन चुनरिया झूठी है !