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वसंत नहीं लौटा / अरविन्द अवस्थी

वसंत आया
गूँजने लगे
वासंती स्वर ।
महकने लगीं
वासंती गलियाँ ।
फूट-फूट पड़ीं
पौधों में
कोपलें ।
साफ़-साफ़
दिखने लगा
आसमान का
नीला चेहरा ।
लौट आए
बच्चों के साथ
पंख फैलाए
प्रवासी पक्षी
किंतु नहीं लौटा
मेरा प्यारा ‘वसंत’
देश की
सरहद से ।

बम के धमाकों ने
बिखेर दिया
मेरे माथे का सिंदूर ।
सोख लिया
आशाओं का पानी ।
लील ली
चूड़ियों की खनक
और लिख दी
जीवन के पन्नों पर
पतझड़ की कहानी
आँसुओं से ।
(आखर के नए घराने)