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वस्ल के लम्हे कहानी हो गए / फ़रहत कानपुरी

वस्ल के लम्हे कहानी हो गए
शब के मोती सुब्ह पानी हो गए

रफ़्ता रफ़्ता ज़िंदगानी हो गए
ग़म के लम्हे जावेदानी हो गए

दौलत-ए-अहद-ए-जवानी हो गए
चंद लम्हे जो कहानी हो गए

कैसी कुछ रंगीनियाँ थीं जिन से हम
महव-ए-सैर-ए-दहर-ए-फ़ानी हो गए

सुख भरे दुख दुख भरे सुख सब के सब
वाक़िआत-ए-ज़िंदगानी हो गए

मुस्कुराए आप जाने किस लिए
हम रहीं-ए-शादमानी हो गए

बातों ही बातों में रातें उड़ गईं
हाए वो दिन भी कहानी हो गए

तुम ने कुछ देखा ख़ुलूस-ए-जज़्ब-ए-शौक़
संग-रेज़े गुल के पानी हो गए

‘फ़रहत’ ऐसी बुत-परस्ती के निसार
बुत भी महव-ए-लन-तरानी हो गए