भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वही है दिन, वही रातें, वही फ़ज़िर, वही शाम / सौदा

Kavita Kosh से
विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:11, 9 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौदा }} category: ग़ज़ल <poem> वही है दिन, वही रातें, वही फ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वही है दिन, वही रातें, वही फ़ज़िर1, वही शाम
वही है रोशनि-ए-मेहरो-मह2 जो कुछ थी मदाम3
न जाने दौरे-मुहब्बत का क्या हुआ, या रब!
कि दोस्तों से जुदा करके गर्दिशे-अय्याम4
हमें ले आयी है शहरे-ग़रीब5 जिस दिन
कभू उन्हों की तरफ़ से न नाम-ओ-पैग़ाम
अलल-ख़ुसूस6 तग़ाफ़ुल7 को 'मीर' साहब के
कहूँ मैं किससे कि बावस्फ़े-इत्तहादे-तमाम8
लिखा न परच-ए-काग़ज़ भी इतनी मुद्दत में
कि बेक़रारों को ता होवे मूजिबे-आराम9
कभू उन्हों को हमारी भी उल्फ़ते-साबिक़10
किसी के हाथ जो भेजे है नाम-ओ-पैग़ाम
जो वो फिरे है उधर से तो ये भी कहता नै11
कि मैं कहीं थी तिरी बंदगी, उन्होंने सलाम

शब्दार्थ:
1. सुबह 2. सूरज-चाँद की रोशनी 3. सदैव, स्थायी 4. समय चक्र 5. परदेस का शहर 6. विशेष तौर पर 7. उपेक्षा 8. तमाम मेल-जोल के बाद 9. आराम का कारण 10. पुराना प्रेम 11. नहीं

विशेष:
मीर तक़ी 'मीर' की याद में लिखी गयी यह नज़्म वास्तव में एक ग़ज़ल का क़ता है। यह माना जाता है कि सौदा ने दिल्ली छोड़ दी थी और मीर तक़ी 'मीर' अभी दिल्ली में ही थे।