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वह प्रेम करेगी / उत्पल बैनर्जी

वह प्रेम करेगी --
और चाँद खिल उठेगा आकाश में
सुनाई देगा बादलों का कोरस,
वह प्रेम करेगी --
और मैं भेज दूँगा बादलों को
जलते हुए रेगिस्तानों में,
वह प्रेम करेगी --
और आकाश में दिखाई देंगे इन्द्रधनुष के सातों रंग
वह प्रेम करेगी --
और थम जाएगा हिरोशिमा का ताण्डव
लातूर का भूकम्प
अफ़्रीका के अरण्य में पहली बार उगेगा सूरज
सागर की छाती पर फिर कोई जहाज़ नहीं डूबेगा
फिर विसुवियस के पहाड़ आग नहीं उगलेंगे,

वह प्रेम करेगी --
और मैं देखूँगा अनन्त में डूबा आकाश
देखूँगा -- मोर के पंखों का रंग,
प्यार करूँगा -- जिन्हें कभी किसी ने प्यार नहीं किया,
देखूँगा -- लहरों के उल्लास में
उफनती मछलियाँ
पंछी ... विषधर साँपों के अनोखे खेल
ऋतुमती पृथ्वी
झीलों का गहरा पानी
अज्ञात की ओर जाती अनन्त चीटियों की कतार,
किसी प्राचीन आकाशगंगा में हम दोनों खेलेंगे
चाँद और सूरज की गेंद से,

वह प्रेम करेगी --
और मैं उसे भेजूँगा
अंजुरी भर धूप
एक मुट्ठी आसमान
एक टुकड़ा चाँद
थोड़े-से तारे,

वह प्रेम करेगी --
और किसी दिन
जाकर न लौट पाने की
असम्भव दूरी से
जो आख़िरी बार हाथ हिलाकर
मन ही मन केवल कह सकूँ विदा ...

जीवन के किसी मधुरतम क्षण में
तिस्ता किनारे सौंपना मुझे
तुम्हारी आँखों का एक बून्द पानी
और हृदय का थोड़ा-सा प्यार!