Last modified on 22 फ़रवरी 2018, at 15:59

वह बदलेगा, यह जब सोचा बदल कर ही तू दम लेगा / विजय 'अरुण'

वह बदलेगा, यह जब सोचा बदल कर ही तू दम लेगा
तू बदलेगा, तो बदलेगा यह तेरा भाग्य बदलेगा।

मेरे हमदम! फिसल जाने को गिर जाना नहीं कहते
फिसलनी है जो यह दुनिया कहीं तो पांव फिसलेगा।

इरादे नेक हों जिस के जिसे उस पर भरोसा हो
वह जिस रास्ते पै चल देगा वही मंजिल पर निकलेगा।

न साक़ी फ़िक्रे ज़ाहिद कर कि वह संभलेगा अब कैसे?
वह हर पग पर ख़ुदा का नाम लेगा और संभलेगा।

तेरी जन्नत की चीज़ों से मेरी रुचियाँ नहीं मिलतीं
मुझे अफ़सोस है ज़ाहिद यह दिल उन से न बहलेगा।

अगर दिल में खुशी होगी तो बातों में भी झलकेगी
जो होगा हौज़ में पानी तो फ़व्वारा भी उछलेगा।

 'अरुण' का प्रेम ऐसा है जो अवरोधों से बढ़ता है
अरुण को अभ्र ढक लेगा तो सूरज बनकर निकलेगा।