भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह लेटी है तरु छाया में / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:46, 22 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह=युगांत / सुमित्रानंदन…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छाया?
वह लेटी है तरु-छाया में
सन्ध्या-विहार को आया मैं।
मृदु बाँह मोड़, उपधान किए,
ज्यों प्रेम-लालसा पान किए;
उभरे उरोज, कुन्तल खोले,
एकाकिनि, कोई क्या बोले?
वह सुन्दर है, साँवली सही,
तरुणी है--हो षोड़षी रही;
विवसना, लता-सी तन्वंगिनि,
निर्जन में क्षण भर की संगिनि!
वह जागी है अथवा सोई?
मूर्छित या स्वप्न-मूढ़ कोई?
नारी कि अप्सरा या माया?
अथवा केवल तरु की छाया?

रचनाकाल: अप्रैल’१९३५