हम जे कह रहल बानी
ओकरा जान-समझ ल।
देव आउर अदमी
जवन गुरू समान बरहम के
मान देवेलन
उ गुरू के
ओह लायक गेयानी
हमहीं बनाईंला। ॥5॥
अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः ।
यं कामये तंतमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ॥5॥