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वागाम्‍भृणी सूक्‍त, ऋग्वेद - 10 / 125 / 5 / कुमार मुकुल

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हम जे कह रहल बानी
ओकरा जान-समझ ल।
देव आउर अदमी
जवन गुरू समान बरहम के
मान देवेलन
उ गुरू के
ओह लायक गेयानी
​​हमहीं बनाईंला। ॥​5॥

अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः ।
यं कामये तंतमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ॥5॥