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वाणी-वंदन / रामगोपाल 'रुद्र'

मा वाणी! मा वाणी! जय-जय जय मा वाणी!

शरच्चन्‍द्र-पूर्णिम-विभावरी,
सुधानना, अनुपम विभा-भरी,
अंग-अंग सित-कुन्‍द, कांत-वपु,
शुभ्र शुक्लवसना सुधाधरी,
वीणा-मंडित, सुर-नर-वंदित, सित-शतदल-थिर-ज्ञानी!

कुमतिहारिणी, भक्‍त-तारिणी,
मन्‍दस्मितमुख, तमनिवारिणी,
नमस्कार हे, बार-बार हे,
जन मराल-मानस-विहारिणी,
धृत-पुस्तक-मणि-स्फटिक-मालिका, मुद-मंगल-मतिदानी!

अहो वेद-वेदांग-अखिल-मति,
अखिल-ज्योति-धारिणी, अखिल-गति,
लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि हे,
गौरी, प्रभा, तुष्टि, ओ मा धृति!
अपनी विविध मूर्तियों से कल्याण करो, कल्याणी!