भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वाम हैं दिशा हैं वे / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
वाम हैं  
 
वाम हैं  
 
दिशा हैं वे
 
दिशा हैं वे
 +
 
वे हड्डियों को डंडे की तरह
 
वे हड्डियों को डंडे की तरह
 
और अपनी देह को झंडे की तरह
 
और अपनी देह को झंडे की तरह
पंक्ति 23: पंक्ति 24:
 
कि जनता जब कष्ट से पागल हो कर  
 
कि जनता जब कष्ट से पागल हो कर  
 
उनके साथ आएगी
 
उनके साथ आएगी
 +
 
राजपद को वे जनहित मे
 
राजपद को वे जनहित मे
 
सामूहिक तौर पर अस्वीकृत करेंगे
 
सामूहिक तौर पर अस्वीकृत करेंगे
 
और उस अस्वीकार की
 
और उस अस्वीकार की
 
डुगडुगी भी नही बजायेंगे
 
डुगडुगी भी नही बजायेंगे
 +
 
हजारसाला गुलामी के बाद
 
हजारसाला गुलामी के बाद
 
वे बचे हुए कंठ हैं
 
वे बचे हुए कंठ हैं
जहां सरस्वती की तरहस्मृति बसती है
+
जहां सरस्वती की तरह
 +
स्मृति बसती है
 +
 
 
इसपर चिंतित मत होओ
 
इसपर चिंतित मत होओ
 
कि वे केंद्र मे नहीं रहे
 
कि वे केंद्र मे नहीं रहे
पंक्ति 36: पंक्ति 41:
 
वे भीड़ को जनता बनाने की
 
वे भीड़ को जनता बनाने की
 
कोशिश मे लगे हैं
 
कोशिश मे लगे हैं
 +
 
ध्रुवों की बर्फ में तुम कहाँ उन्हें ढूंढ रहे
 
ध्रुवों की बर्फ में तुम कहाँ उन्हें ढूंढ रहे
 
कब के वहां से प्रयाण कर चुके वे
 
कब के वहां से प्रयाण कर चुके वे

16:39, 13 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण


वाम हैं
दिशा हैं वे

वे हड्डियों को डंडे की तरह
और अपनी देह को झंडे की तरह
लहरा सकते हैं
उनकी आशा हमेशा जनता से रहती है
अक्ल के टटपुंजिओं से वे
कभी सम्मान की आशा नहीं करते
बेइज्जत कर वे
चाणक्य की तरह भले निकाले जाएं
पर तैश मे भी वे चुटिया बांधेंगे नहीं
बल्कि काटेंगे
वे इंतजार करेंगे
कि जनता जब कष्ट से पागल हो कर
उनके साथ आएगी

राजपद को वे जनहित मे
सामूहिक तौर पर अस्वीकृत करेंगे
और उस अस्वीकार की
डुगडुगी भी नही बजायेंगे

हजारसाला गुलामी के बाद
वे बचे हुए कंठ हैं
जहां सरस्वती की तरह
स्मृति बसती है

इसपर चिंतित मत होओ
कि वे केंद्र मे नहीं रहे
वे हाशिए पर है
क्यों कि जनता हाशिए पर है
वे भीड़ को जनता बनाने की
कोशिश मे लगे हैं

ध्रुवों की बर्फ में तुम कहाँ उन्हें ढूंढ रहे
कब के वहां से प्रयाण कर चुके वे
लंदन तक अपनी भरी मालगाड़ी लेकर
पहुचे ड्रैगन मे भी उन्हें मत ढूंढो
कि वे अब तुम्हारे मानस के केंद्र में पड़ी
मनुष्यता की राख मे हैं
फीनिक्स की तरह पड़े हुए।