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वायुयान / ठाकुर गोपालशरण सिंह

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सुंदर, सजीला, चटकीला वायुयान एक,
भैया, हरे कागज का आज मैं बनाऊँगा!

चढ़ के उसी पे सैर नभ की करूँगा खूब,
बादल के साथ-साथ उसको लड़ाऊँगा!

मंद-मंद चाल से चलाऊँगा उसे मैं वहाँ,
चहक-चहक चिड़ियों के संग मैं गाऊँगा!

चंद्र का खिलौना मृग-छौना वह छीन लूँगा,
भैया को गगन की तरैया तोड़ लाऊँगा!

-साभार: बालसखा, 1926