भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वायु / मुंशी रहमान खान

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:50, 13 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुंशी रहमान खान |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वायु न होती धरनि पर नहीं जियत जिव धारि।
बिनु प्रसंग घन वायु के नहिं बरसत जग वारि।।
नहिं बरसत जग वारि वायु दुर्गंध नशावै।
कठिन तेज रवि की किरन छिन महं तपन बुझावै।।
कहैं रहमान वायु सुखदाता जीवन जियें भर आयु।
कोई वस्‍तु नहिं होत जग जो नहिं होती वायु।।