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"वासंतिक फल / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

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नहीं पलों में पतझड़ बीता  
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नहीं क्षणों में पतझड़ बीता  
औ बसंत का हुआ आगमन,
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औ बसंत का हुआ आगमन
सूखी डालों को पल भर में  
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सूखी डालों को क्षण भर में
नहीं मिला है वासंतिक धन।
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नहीं मिला है वासंतिक धन
  
नहीं जगे ये बौर अचानक  
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नहीं जगे ये बौर अचानक
नहीं ख़ुशी पल भर में छाई,
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नहीं खुशी क्षण-भर में छाई
नहीं पलों में इस धरती पर  
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नहीं क्षणों में इस धरती पर
मधुर धूप ने ली अंगड़ाई।
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मधुर-धूप ने ली अंगड़ाई
  
शिशिर-काल इन सब ने झेला
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शिशिर-काल इन सबने झेला
औ संघर्ष किया पतझड़ से,
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औ संघर्ष किया पतझड़ से
जुड़े रहे ये दुख के क्षण में  
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जुड़े रहे ये दुखद समय में
अपने जीवन रूपी जड़ से।
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अपने जीवन रूपी जड़ से
  
इसी तरह जीवन का पतझड़  
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इसी तरह जीवन का पतझड़
समय बीतते है टल जाता,
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समय बीतते है टल जाता
जिसमें है संघर्ष की शक्ति
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विपदा से जो लड़ बचता है
वह ही वासंतिक फल खाता।
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वह ही वासंतिक फल खाता
 
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19:07, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

नहीं क्षणों में पतझड़ बीता
औ बसंत का हुआ आगमन
सूखी डालों को क्षण भर में
नहीं मिला है वासंतिक धन

नहीं जगे ये बौर अचानक
नहीं खुशी क्षण-भर में छाई
नहीं क्षणों में इस धरती पर
मधुर-धूप ने ली अंगड़ाई

शिशिर-काल इन सबने झेला
औ संघर्ष किया पतझड़ से
जुड़े रहे ये दुखद समय में
अपने जीवन रूपी जड़ से

इसी तरह जीवन का पतझड़
समय बीतते है टल जाता
विपदा से जो लड़ बचता है
वह ही वासंतिक फल खाता