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वाहन और सापेक्षतावाद / सरोज कुमार

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मैं जब मोटर में बैठता हूँ
मुझे ताँगे- बुर्जुया
ऑटोरिक्शे फड़तूस
टेम्पो सड़कछाप
और साइकिलें सर्कसिया लगती हैं!

मैं जब ताँगें में बैठता हूँ
मुझे मोटरें सफ़ेद हाथी
रिक्शे आवारे
टेम्पो भोंडे
और साइकिलें छिछोरी लगती हैं!
ऑटोरिक्शे में बैठने पर
मुझे मोटरें स्नोब
ताँगें एतिहासिक
टेम्पो रीड़क्श्न-सेल
और साइकिलें कंजूस लगती हैं!

मुझे टेम्पो में बैठने पर
मोटरें दुश्मन
ताँगें तमाशा
रिक्शे फिजूल खर्च
और साइकिलें दयनीय लगती हैं!

जब मैं साइकिल पर होता हूँ
मुझे मोटर वर्ग-भेद
ताँगें सामंती
रिक्शे चोंचले
और टेम्पो यमदूत लगते हैं!

मुझे पाँव-पाँव होने पर
मोटरें, ताँगें, रिक्शे, टेम्पो या साइकिलें
खरगोशी आपाधापी के नुमाइंदे
और फुटपाथ, कछुआ दौड़ की
सुरक्षित गैलरी-सा लगता है!

कभी, गति मन को
कभी, मन दृश्यों को ठगता है!