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विचार: अगली शताब्दी की ओर / शैलेन्द्र चौहान

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कई खेमे थे वहाँ
और हर खेमे से हो रहा था
नवीन विचारों का प्रस्फुटन
जिन्हें वे मौलिक कहकर
अख़बारी लिफ़ाफे़ से निकाल
पैक कर रहे थे पॉलीथीन की पन्नी में

अगर मान लें कि वही पहला खेमा रहा होगा
जिन्होंने यह कहा कि
यह शताब्दी धकेल रही है हमें
अगली शताब्दी की ओर
अगली शताब्दी फिर धकेल देगी
अगली की तरफ़
इस तरह अगली जो आज बन जाएगी पिछली
साँप के केंचुल की तरह

वे लोग अपना केंचुल उतारने को थे तत्पर
कमज़ोर की लाश पर गुज़रने को तैयार
यश और उन्नति के शिखर पर पहुँचने के लिए बेताब
शासकीय वैन के टैंक में वे भरा चुके थे डीज़ल
उनकी निगाहें केंद्रित थीं राजधानी से उड़कर
किसी और देश को जाते हुए विमान पर
दूसरे खेमे के नज़दीक ही
एक कुत्ता मरा पड़ा था
पर वे लोग इससे अप्रभावित
भाँति-भाँति के जोकरनुमा कपड़े पहने
भौंकते, रैंकते, रम्भाते, हिनहिनाते
वियाग्रा तलाशते कर रहे थे डिस्को
वे विचारों से ऊपर उठ चुके थे
उससे अगला खेमा भोंपू पकड़
कर रहा था गलाफाड़ चिल्लाने की प्रतियोगिता
उनके पास थे पश्चिम आयातित
डब किए हुए एक दर्जन नारे
उनकी नज़र में आज सबसे ज्यादा उपजाऊ फ़सल थी
विचारधारा का अंत, एक सनसनीखेज विचार

सफारी सूट पहने
वाद-विवाद प्रतियोगिता के संचालन में मस्त
वे उदारीकरण, भूमंडलीकरण
उत्तर-आधुनिकता के पक्ष में
अमरीकी समाचार-पत्रों की
जूठन चाटने में बुरी तरह थे व्यस्त

आगे जो खेमा था वे लोग अलाव जलाकर
ताप रहे थे आग दोपहर की गर्मी में
वे थे शुद्ध विचारवादी
मार्क्स से रजनीश तक के विचारों से
घुल-मिल चुके थे इस तरह
कि अब उनके लिए बन गई थी
दीन-दुनिया एक वाग्विलास

वे निपुण थे हाथ झाड़ने में
ज़िम्मेदारी और कर्तव्य से
क्या देश क्या विदेश
उनके लिए सब महज मशीनी उत्पाद-भर थे

सम्मोहन और वशीकरण की विद्या मंे माहिर
भक्तों की भक्ति का भरपूर
आनंद उठा रहे थे वे
कहते हैं कि अगले खेमे के लोग थे बेहद अनुशासित
कड़ाके की सर्दी में सुबह सात बजे
निक्कर पहने खड़े थे पार्क में
एक हाथ में डंडा और दूसरे में तलवार
मुँह में उनके बसे थे राम
अनुपम भक्त थे वे राष्ट्र, राज्य और राम के
शत्रु अन्य धर्म और वर्ण-वर्ग समानता के

कर ली थी जय रामजी की इन लक्ष्मीपुत्रों ने
समस्त इतर विचारों से
औसत मध्यवर्ग की नब्ज़ उनकी पकड़ में थी
अहिस्ता-अहिस्ता उनकी जड़ें ज़मीन में
होती जा रही थीं गहरी
कँटीली घास की तरह

आगे एक और खेमा कुछ मॉडरेट खेमा था
मार्क्स और शंकराचार्य दोनों का समर्थक
पूर्व और पश्चिम दोनों से लाभदायक गुणों को आत्मसात कर
एक मुट्ठी में भगवान तो दूसरी में विज्ञान
एक तरफ़ कला तो दूसरी ओर राजनीति में
उनका था पूरा हस्तक्षेप

अच्छा खाने, पीने, पहनने, भोगने के थे सब कायल
विचार और व्यवहार के बीच खींच रखी थी
सबने एक सनातन लक्ष्मण-रेखा

जिसमें चतुष्वर्ण आकंठ डूबते-उतराते पाए गए
सभी इस बात से पूर्ण-रूपेण एकमत थे कि आजकल
विचार पर विचार करना बहुत मुनाफ़े का व्यवसाय है।