विजयी! मैं इस का प्रतिदान नहीं माँगती। यह भी नहीं कि तुम इन्हें ग्रहण ही करो। भेंट का साफल्य उसे दे देने में ही है, उस की स्वीकृति में नहीं। तुम नि:शंक हो कर इन्हें ठुकराओ और अपने विजय-पथ पर बढ़े चले जाओ! विजयी! 1934