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विजेता / गोरख प्रसाद मस्ताना

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अभावों के पहाड़
वेदना का सागर
उपेक्षा की लहरें
प्रताड़ना के गागर
सब चकनाचूर
काफूर
मेरे साहस के सूरज ने सबों कों
किया ध्वस्त,
पस्त
धुँध की चादर पर ज्यों पछिया
का वार
फाड़ देती है क्षितिज के उस पार तक
निराशा को
उम्मीदों की निगलनेवाली
परिभाषा को
मैं कदापि हतोत्साह नहीं होता
जैसे सूरज नहीं सोता
नहीं हारता घने कुहरे से
असित मेघों से
समय की जंजीर
रोक नहीं सकती मेरे रास्ता
बाँध नहीं सकती मेरे उत्साह को
जीवन तरंग को जैसे
हवा नहीं बाँध सकती
धुप के सात रंगों को
मेरे अंतर के सूरज ने
व्रत ले रखा है
अँधेरे को बेधने का
निराशा को छेड़ने का
आँख आंसू के तिजोरी है
आदमी की कमजोरी है
लेकिन जिसने इसे साध लिया
हृदय में बाँध लिया
वही विजेता है।