बदलती हूँ करवटें रात भर
करती हूँ इंतज़ार
पर भोर कभी होती नहीं
प्रसव की सी वेदना झेलती उठती हूँ
पर रचा जाता कुछ भी नहीं
रोज ही हो जाता है गर्भपात
मेरी आशाओं का
कैद है मन प्रेम की परिभाषा में
भाषा नहीं है प्रेम की
भाव है
यहाँ भाव को समझने का
घोर अभाव है