भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वितान / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
{{KKCatMahilaRachnakaar}}
 
 
<poem>भूलक्कड़ हो रहा है दिन
 
<poem>भूलक्कड़ हो रहा है दिन
 
तपते छत के नीचे
 
तपते छत के नीचे
पंक्ति 26: पंक्ति 25:
 
सुनने जैसी तरलताओं में
 
सुनने जैसी तरलताओं में
 
अंकन की दृश्यता का गीत है
 
अंकन की दृश्यता का गीत है
तुम हो.........
+
तुम हो
  
 
जब कहीं छूट जाएँ शब्द
 
जब कहीं छूट जाएँ शब्द
पंक्ति 34: पंक्ति 33:
 
केवल इतना याद रखना
 
केवल इतना याद रखना
 
कि समवेत स्वर में कहा है
 
कि समवेत स्वर में कहा है
प्रेम हमने .......
+
प्रेम हमने
  
 
तुम्हारे दीर्घ में वितान पा रहा है
 
तुम्हारे दीर्घ में वितान पा रहा है
मेरा ह्रस्व ......!!!</poem>
+
मेरा ह्रस्व!</poem>

19:01, 20 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

भूलक्कड़ हो रहा है दिन
तपते छत के नीचे

तृषा और तृप्ति के मध्य
पृष्ठ गिने जा रहे हैं किताबों के

शब्दों में अन्तस्थ भाव जल
उतर कर दृगों में
शीर्षक की गिनती भिगोते हैं

ठहरने में भय है
डूब जाने का
किनारे-किनारे नदी के
रोपती हूँ मन

बहुत सी कही गयी बातों में
अनकहा सा कुछ नहीं
सुनने जैसी तरलताओं में
अंकन की दृश्यता का गीत है
तुम हो

जब कहीं छूट जाएँ शब्द
विस्मृत हो जाए भाव
उलट-पुलट हो जाए गिनती की संख्या
विस्तार का कोई अवयव कम लगे
केवल इतना याद रखना
कि समवेत स्वर में कहा है
प्रेम हमने

तुम्हारे दीर्घ में वितान पा रहा है
मेरा ह्रस्व!