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"विदा करने निकली जब माता / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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विदा करना निकली जब माता
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पग से लिपट रो पड़ी बहुएं, न्याय यही कहलाता ?  
 
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं, न्याय यही कहलाता ?  
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तब वन में था बल स्वामी का
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सिर पर था न अयश का टीका
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अब तो छूट रहा भगिनी का
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इस घर से ही नाता

00:02, 31 अगस्त 2007 का अवतरण

विदा करने निकली जब माता

पग से लिपट रो पड़ी बहुएं, न्याय यही कहलाता ?


हमने बचपन साथ बिताये

ब्याह हुआ संग संग पति पाये

सीता को ही दुःख दिखलाये

     क्यों नित नए विधाता ? 

कोमल चित थे जेठ हमारे

बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे

छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे

     कोई तो समझाता !

तब वन में था बल स्वामी का सिर पर था न अयश का टीका अब तो छूट रहा भगिनी का इस घर से ही नाता