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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=सीता-वनवास / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
<poem>
 
विदा करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं बहुएँ, 'न्याय यही कहलाता ? 'हमने बचपन साथ बितायेब्याह हुआ सँग-सँग पति पायेसीता को ही दुख दिखलाये क्यों नित नये विधाता!
'कोमल-चित् थे जेठ हमारे
बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे!
छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे!
कोई तो समझाता!
हमने बचपन साथ बितायेब्याह हुआ संग संग पति पायेसीता को ही दुःख दिखलाये क्यों नित नए विधाता ?  कोमल चित थे जेठ हमारेबंधु खड़े क्यों चुप्पी धारेछिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे कोई तो समझाता !  'तब वन में था बल स्वामी का
सिर पर था न अयश का टीका
अब तो छूट रहा भगिनी का
इस घर से ही नाता !' विदा करने निकली जब मातापग से लिपट रो पड़ी बहुएँ, 'न्याय यही कहलाता?
<poem>
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