भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विदा करने निकली जब माता / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category:गीत]]
 
[[Category:गीत]]
 
<poem>
 
<poem>
 +
 
विदा करने निकली जब माता
 
विदा करने निकली जब माता
 
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं
 
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं

08:08, 6 अगस्त 2009 का अवतरण


विदा करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पड़ी बहुएं
  न्याय यही कहलाता ?
 

हमने बचपन साथ बिताये
ब्याह हुआ संग संग पति पाये
सीता को ही दुःख दिखलाये
  क्यों नित नए विधाता ?
 

कोमल चित थे जेठ हमारे
बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे
छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे
  कोई तो समझाता !


तब वन में था बल स्वामी का
सिर पर था न अयश का टीका
अब तो छूट रहा भगिनी का
 इस घर से ही नाता !